Sankata Mata: भारतीय संस्कृति में देवी-देवताओं की पूजा का विशेष महत्व है, विशेषकर तब जब जीवन संकटों से घिरा हो। ऐसी ही एक देवी हैं संकटा माता, जिन्हें संकटों को हरने वाली और जीवन में सुख-शांति लाने वाली शक्ति माना जाता है। इनकी पूजा विशेष रूप से संकटों, बीमारियों, क्लेशों और बाधाओं से मुक्ति के लिए की जाती है।
उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में संकटा माता की विशेष मान्यता है और लोग श्रद्धा पूर्वक इनकी पूजा करते हैं। इस लेख में संकटा माता की पूजा विधि, कथा, महत्व और लाभों को विस्तार से समझाने का प्रयास किया गया है।
संकटा माता कौन हैं?
संकटा माता को मां दुर्गा का एक रूप माना जाता है। इन्हें संकटों से मुक्त करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। विशेष रूप से स्त्रियां, अपने परिवार और संतान की रक्षा के लिए इनकी आराधना करती हैं। संकटा माता को “संकट हरिणी” और “कष्ट निवारिणी” भी कहा जाता है।
इनकी पूजा मुख्यतः माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को की जाती है, जिसे संकटा चतुर्थी भी कहा जाता है। हालांकि कुछ स्थानों पर हर महीने आने वाली चतुर्थी को भी संकटा माता की पूजा के रूप में मनाया जाता है।
Sankata Mata की पूजा विधि
संकटा माता की पूजा घर में या मंदिर में बहुत ही सरल विधि से की जाती है। श्रद्धा और निष्ठा ही इस पूजा का सबसे बड़ा आधार है।
पूजा सामग्री:
- लाल वस्त्र
- लाल फूल (गुलाब या गुड़हल)
- हल्दी, कुमकुम, अक्षत
- दीपक, धूप, कपूर
- नारियल, मिठाई (लड्डू या गुड़ से बने पदार्थ)
- संकट माता की मूर्ति या चित्र
- जल और पंचामृत
- अगरबत्ती
पूजा विधि:
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ लाल या पीले वस्त्र धारण करें।
- घर के पूजा स्थान को स्वच्छ कर संकटा माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- दीपक जलाएं और माता को रोली, अक्षत, पुष्प अर्पित करें।
- माता को भोग स्वरूप फल या मिठाई चढ़ाएं।
- “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” या “ॐ संकटनाशन्यै नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
- संकट माता की कथा सुनें या पढ़ें।
- अंत में आरती करें और प्रसाद को घर के सभी सदस्यों में बांटें।
संकटा माता की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार रहता था। उसकी पत्नी का नाम ‘सावित्री’ था। उसके सात पुत्र थे। एक बार उसके सबसे छोटे पुत्र की तबीयत अत्यंत खराब हो गई और सभी उपचार व्यर्थ हो गए। सावित्री बहुत दुखी हुई और पास की वृद्धा स्त्री से मदद मांगी। वृद्धा ने उसे संकटा माता की चतुर्थी व्रत करने और कथा सुनने की सलाह दी। सावित्री ने विधिपूर्वक व्रत किया, माता संकटा की कथा सुनी और आरती की। माता ने उसकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर उसके पुत्र को नया जीवन दे दिया।
उस दिन से सावित्री ने प्रतिवर्ष यह व्रत किया और उसके सभी पुत्र दीर्घायु और समृद्ध बने। तभी से संकटा माता की पूजा को संकटों के निवारण का अचूक उपाय माना जाता है।
संकटा माता व्रत का महत्व
संकटा माता का व्रत करने से न केवल जीवन के संकट दूर होते हैं, बल्कि शारीरिक और मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। विशेष रूप से जिन परिवारों में संतान संबंधी समस्याएं होती हैं, उन्हें यह व्रत करने से अत्यधिक लाभ मिलता है।
प्रमुख लाभ:
- संतान की दीर्घायु और स्वास्थ्य
- पारिवारिक कलह से मुक्ति
- रोगों से राहत
- आर्थिक संकट से छुटकारा
- मन की शांति और अध्यात्मिक विकास
संकटा माता के प्रमुख मंदिर
भारत में संकटा माता के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हैं जहाँ भक्तगण भारी संख्या में दर्शन हेतु पहुंचते हैं:
1. संकट देवी मंदिर, बनारस (वाराणसी), उत्तर प्रदेश
– यहां माता को हर संकट की रक्षक माना जाता है और नवरात्रि में विशेष भीड़ होती है।
2. संकट हरण मंदिर, उज्जैन, मध्य प्रदेश
– यहां संकटों को हरने वाली देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
3. संकटा देवी मंदिर, दिल्ली (चांदनी चौक)
– हजारों भक्त यहां मंगलवार को विशेष पूजा करते हैं।
व्रत के नियम
- व्रतधारी को दिनभर निराहार या फलाहार रहना चाहिए।
- ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है।
- दिन में एक बार संकट माता की कथा अवश्य सुननी चाहिए।
- व्रत का समापन शाम को आरती और प्रसाद वितरण के साथ करें।
निष्कर्ष
संकटा माता की पूजा करने के लिए श्रद्धा और आस्था का होना बहुत जरूरी है। यह पूजा व्यक्ति को आत्मबल देती है और संकटों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है। जीवन में जब भी कोई बड़ा संकट आए, तब संकटा माता का व्रत और पूजा करके व्यक्ति फिर से अपने जीवन को पटरी पर ला सकता है।
आप भी अपने जीवन के संकटों से मुक्ति चाहते हैं, तो संकटा माता की शरण में जाएं — विश्वास और भक्ति से करें पूजा, और पाएं हर कष्ट से छुटकारा।
अस्वीकरण (Disclaimer):- इस पर दी गई जंकारिया और उपाय पौराणिक मान्यताओ के आधार पर हैं। न्यूजरी (NewsGery) या इसका कोई भी टीम इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।
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