Kashi Das/Kashi Nath: भारत की विविधता भरी संस्कृति में प्रत्येक समुदाय के अपने विशेष पर्व और आस्थाएँ होती हैं। इन्हीं में से एक है “काशी दास/काशी नाथ बाबा की पूजा”, जिसे यादव समाज न सिर्फ धार्मिक आस्था के रूप में मानता है, बल्कि इसे अपने गौरव, परंपरा और सामाजिक एकता का प्रतीक भी मानता है। आज हम आपको बताएंगे कि क्यों यह पूजा यादव समाज का टॉप 1 सांस्कृतिक त्योहार मानी जाती है। और साथ यह भी बताएंगे की हाल ही में अभी ये पूजा किस गावँ में हुआ हैं।

Kashi Das/Kashi Nath बाबा कौन हैं?
काशी नाथ/काशी दास बाबा को यादवों के कुल देवता के रूप में पूजा जाता है। इनके बारे में कोई लिखित पौराणिक कथा भले न हो, लेकिन लोक परंपरा, आस्था और पूर्वजों के अनुभव इन्हें देवत्व प्रदान करते हैं।
कई लोग मानते हैं कि बाबा काशी नाथ, भगवान शिव के ही एक लोक रूप हैं, जो विशेष रूप से गांव की रक्षा, समाज की समृद्धि और एकता के लिए पूजे जाते हैं।
उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के यादव बाहुल्य गांवों में बाबा काशी दास/काशी नाथ का स्थायी स्थान होता है – कहीं मंदिर, कहीं चबूतरा, और कहीं पवित्र वृक्ष के नीचे उनका प्रतीक चिह्न स्थापित होता है।
यह त्योहार कब और कैसे मनाया जाता है?
काशी नाथ बाबा की पूजा वर्ष में एक बार किसी विशेष दिन – प्रायः ज्येष्ठ या आषाढ़ मास में होती है।
हालांकि यह दिन अलग-अलग गांवों में भिन्न हो सकता है, लेकिन आयोजन की भावनाएं, विधि और परंपरा लगभग एक-सी होती हैं।
मुख्य आयोजन में शामिल होते हैं:
- कलश यात्रा:
महिलाएं पारंपरिक वस्त्रों में सजकर नदी या कुएं से गंगाजल लाकर कलश यात्रा निकालती हैं। - स्थल की पूजा-सज्जा:
जहां बाबा विराजमान हैं, वहां पूरे गांव द्वारा सफाई और फूल-मालाओं से सजावट होती है। - हवन, पूजा व भोग:
दूध, दही, गुड़, चावल आदि का भोग चढ़ाकर सामूहिक हवन होता है। - भजन-कीर्तन और जागरण:
रातभर चलने वाला कीर्तन गांव को भक्ति और उल्लास से भर देता है। - भंडारा (सामूहिक भोजन):
हजारों लोग एक साथ प्रसाद पाते हैं। यही सामाजिक एकता की असली मिसाल होती है।

यादव समाज की एकता का प्रतीक
काशी नाथ बाबा की पूजा सिर्फ धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि यादव समाज की एकजुटता और सामूहिकता का जीवंत उदाहरण है।
इस दिन गांव के सभी यादव परिवार, चाहे वे देश के किसी भी कोने में रहते हों, अपने गांव लौटते हैं। यह एक पुनर्मिलन पर्व बन जाता है, जहां संस्कार, परंपरा और संबंध पुनः जीवित हो उठते हैं।
क्यों यह पूजा यादव समाज का “टॉप 1 सांस्कृतिक त्योहार” है?
1. सामूहिक भागीदारी:
हिन्दू धर्म के बहुत से ऐसे पूजा हैं जिसमे केवल महिला या फीर केवल पुरुष ही पूजा में भाग ले सकते हैं लेकिन इस पूजा में हर वर्ग, उम्र और लिंग के लोग इसमें बराबरी से भाग लेते हैं।
2. परंपरा और आध्यात्म का संगम:
इस पूजा में लोक देवता की पूजा होने के बावजूद यह आयोजन वैदिक विधियों से होता है। अलग अलग जगह पर इस पूजा की अपनी अलग ही परंपरा हैं। जैसे- पूजा के बाद कुश्ती दंगल और लोक नाटक (नाच कार्यक्रम) का आयोजन होता हैं, कई जगहों पर बैल या बैलगाड़ी का पूजा भी किया जाता हैं क्योंकी इसे बाबा का वाहन माना जाता हैं और कई स्थानीय जगह पर इस पूजा को करने के लिए कुछ लोंग उबलते हुए दूध से स्नान(नहाना) करते हैं।

3. नई पीढ़ी का जुड़ाव:
यह पूजा कोई पौराणिक कथा के आधार पर नहीं हैं इसलिए यह पूजा अब लुप्त होने के कगार पर हैं लेकिन अभी भी बहुत से युवा सोशल मीडिया के जरिए इस पर्व को प्रमोट करते हैं, जिससे यह आज भी जीवित और प्रासंगिक बना हुआ है।
4. आर्थिक और सामाजिक महत्व:
जब यह पूजा होता तब मेले, स्थानीय बाजार और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से गांव को आर्थिक और सांस्कृतिक बल मिलता है। इस पूजा की वजह से धीरे-धीरे उस गांव का नाम भी पॉपुलर होता हैं। जिसके वजह से उस गांव में धीरे धीरे व्यापार बढ़ने लगता हैं और उस गांव को आर्थिक और सांस्कृतिक बल मिलता है।
3. गौरव और पहचान:
इस पूजा को यादवों ने अपनी सांस्कृतिक पहचान बना ली है, जो उन्हें समाज में एक विशिष्ट स्थान देती है।
लोक संस्कृति की जीवंत झलक
इस आयोजन में आपको नागारों की आवाज, मृदंग की थाप, लोक गीतों की मिठास, और गांव की मिट्टी की खुशबू का ऐसा संगम देखने को मिलेगा, जो किसी भी सांस्कृतिक उत्सव से कम नहीं होता।
बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक इसमें शरीक होते हैं – यही इसे बनाता है यादव समाज का टॉप 1 त्योहार।
हाल ही में अभी किस गांव में इस पूजा का आयोजन हुआ हैं
जैसा की आपलोंग ऊपर पढ़ चुके हैं की इस पूजा का आयोजन एक जगह पर वर्ष मे केवल एक ही बार हो सकता हैं फिर उसके बाद उस गांव में ऐसा कोई पूजा नहीं होता हैं। वर्ष 2025 जेष्ठ माह में यह पूजा उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के भटपर रानी शहर में स्थित हाटपोखर नाम के एक गांव में आयोजन किया गया। जिसमे बहुत दूर दूर के उपस्थित हुए काफी भारी मात्रा में लोंग इस पूजा को देखने के लिए उपस्थित हुए। इस पूजा को देखने के लिए इस गांव के प्रधान से लेकर दूसरे गांव के प्रधान भी उपस्थित हुए।

निष्कर्ष
काशी नाथ/काशी दास बाबा की पूजा केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि यादव समाज की आत्मा है। यह पर्व दिखाता है कि कैसे एक समुदाय अपनी आस्था, संस्कृति और एकता को सहेजकर, उसे हर साल और भी मजबूत करता है।
जब पूरा गांव एक साथ काशी नाथ बाबा को पूजता है, गीत गाता है, और एक पंगत में बैठकर भोजन करता है – तब वह सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि संस्कृति का उत्सव बन जाता है।
अंतिम संदेश
अगर आपने कभी काशी नाथ की पूजा को करीब से नहीं देखा, तो अगली बार इस आयोजन में शामिल होकर आप भी अनुभव कीजिए – श्रद्धा, संस्कृति और समाज का अद्भुत संगम को।