Dickson Fjord: क्या अपने कभी सोचा है कि अगर धरती लगातार हिलती रहे तो क्या होगा? हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक रहस्यमयी घटना को उजागर किया है, जिसमें धरती 9 दिनों तक हर 90 सेकंड पर कंपन करती रही। यह न तो कोई भूकंप था, न ज्वालामुखी, न कोई विस्फोट। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ था? इस रहस्य को सुलझाने में वैज्ञानिकों को पूरे दो साल का समय लग गया।

Dickson Fjord का यह रहस्य शुरू हुआ ग्रीनलैंड से
सितंबर 2023 में, ग्रीनलैंड के पूर्वी हिस्से में स्थित डिकसन फियोर्ड (Dickson Fjord) के पास एक अजीबोगरीब भूकंपीय गतिविधि दर्ज की गई। धरती की गहराइयों से हर 90 सेकंड पर कंपन महसूस किया गया। खास बात यह थी कि यह झटके पारंपरिक भूकंपों जैसे नहीं थे। न कोई ध्वनि, न कोई सतही प्रभाव, बस लगातार आता कंपन।
वैज्ञानिक भी हो गए हैरान
जब दुनिया के अलग-अलग भूकंपीय केंद्रों ने इन संकेतों को रिकॉर्ड किया, तो सभी चौंक गए। आखिर यह कौन-सी घटना है जो इतने नियमित अंतराल पर हो रही है? इस कंपन को समझने के लिए नासा और अन्य संस्थाओं की मदद से सैटेलाइट डेटा, समुद्री माप और भूकंपीय तरंगों का विश्लेषण शुरू किया गया।
असली वजह: एक विशाल भूस्खलन
Dickson Fjord करीब दो साल की गहन जांच के बाद, वैज्ञानिकों ने पाया कि इन कंपन की असली वजह थी – एक विशाल भूस्खलन, जो ग्रीनलैंड के एक पिघलते ग्लेशियर से हुआ था। यह भूस्खलन इतना बड़ा था कि करीब 25 मिलियन क्यूबिक मीटर चट्टान और बर्फ डिकसन फियोर्ड में गिर गई।
इसको गिरने से बनी पानी की ऊंची लहरें (लगभग 650 फीट ऊँची) फियोर्ड की संकरी दीवारों से टकराकर बार-बार आगे-पीछे होती रहीं। यह प्रक्रिया एक “सीच” (Seiche) कहलाती है — जिसमें पानी एक सीमित जलाशय में दो तरफा लहरें बनाता है। यही दोतरफा लहरें लगातार 9 दिनों तक कंपन पैदा करती रहीं, हर 90 सेकंड में एक बार।
इसका कैसे हुआ खुलासा?
Dickson Fjord के इस रहस्य से पर्दा हटाने में NASA के SWOT (Surface Water and Ocean Topography) सैटेलाइट ने अहम भूमिका निभाई। इसने समुद्र और झीलों की ऊपरी सतह का विश्लेषण कर लहरों के पैटर्न को रिकॉर्ड किया। इसके अलावा, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से इन लहरों के व्यवहार का अध्ययन किया गया। अंततः यह निष्कर्ष निकला कि यह एक प्राकृतिक सीच घटना थी, जिसे हमने पहले कभी इस रूप में नहीं देखा।
जलवायु परिवर्तन की चेतावनी
यह घटना केवल एक रहस्य नहीं थी, यह एक चेतावनी भी है। जैसे-जैसे ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं, वैसे-वैसे बड़े स्तर के भूस्खलन और जल-प्रभावित आपदाएं भी बढ़ रही हैं। इसका मतलब यह है कि पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में जो बदलाव हो रहे हैं, वे गहरे और खतरनाक प्रभाव डाल सकते हैं।
क्या हो सकता है आगे?
अगर ऐसी घटनाएं समुद्रों या तटीय इलाकों में होती हैं, तो वे सुनामी जैसी आपदाओं को जन्म दे सकती हैं। इसलिए ऐसी कंपन और सीच लहरों की गहराई से निगरानी करना अब और भी जरूरी हो गया है।
निष्कर्ष
“धरती का हर कंपन कुछ कहता है।”
Dickson Fjord की यह घटना विज्ञान के लिए एक रहस्य से ज्यादा सीख थी। यह दर्शाती है कि कैसे प्राकृतिक घटनाएं कभी-कभी हमारी कल्पनाओं से भी परे होती हैं। Dickson Fjord हमें यह भी बताती है कि जलवायु परिवर्तन केवल तापमान नहीं बढ़ाता, बल्कि पृथ्वी के व्यवहार को भी प्रभावित करता है।
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