Shree Saraswati Chalisa: श्री सरस्वती चालीसा इस बसंत पंचमी पर सूर्यास्त से 2 घंटे पहले करें ये महाशक्तिशालि उपाय, बसंत पंचमी यानि की मां सरस्वती की आराधना का दिन, आपको बता दे की इस दिन एक छोटा सा उपाय बना सकता हैं आपको मां सरस्वती की कृपा का अधिकारी। बसंत पंचमी के दिन सूर्यास्त से 2 घंटे पहले आप शांत चित होकर मां सरस्वती की चालीसा (श्री सरस्वती चालीसा) का पाठ करने से आपको मन चाहे ज्ञान और धन की प्राप्ति हो सकती हैं। आपको बता दे की मां आपकी चमक को सूर्य के समान बना सकती हैं, भवसागर रूपी कुएं में डूबने के साथ हर इच्छा भी पूरी कर सकती हैं।
Shree Saraswati Chalisa: श्री सरस्वती चालीसा
श्री सरस्वती चालीसा
II दोहा II
जनक जननी पदम राजू , निज मस्तक पर धारी।
बन्दौं मातु सरस्वती , बुध्दि बल दे दातारि।।
पूर्ण जगत में व्याप्त तव , महिमा अमित अनंतु।
राम सागर के पाप को , मातु तुही अब हन्तु।।
जय श्रीसकल बुध्दि बलरासी,
जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी।
जय जय जय वीणाकर धारी,
करती सदा सुहंस सवारी।
रूप चतुर्भुज धारी माता,
सकल, विश्व अन्दर विख्याता।
जग में पाप बुध्दि जब होती,
तबही धर्म का फीका ज्योति।
तबाहीं मातु का निज अवतारा,
पाप हिन करती महि तारा।
बाल्मीकीजी थे हत्यारा,
तव प्रसाद जानै संसारा।
रामचरित जो रचे बनाई,
आदि कवि पदवी को पाई।
कालीदास जो भये विख्याता,
तेरी कृपा दृष्टि से माता।
तुलसी सूर आदि विद्वाना,
भये जो और ज्ञानी नाना।
तिनह न और रहेउ अवलंबा,
केवल कृपा आपकी अम्बा।
करहु कृपा सोई मातु भवानी,
दुखित दिन निज दासहि जानी।
पुत्र करई अपराध बहुता,
तेहि न घर चित सुंदर माता।
राखु लाज जननी अब मेरी,
विनय करऊ भाँति बहुतेरी।
मैं अनाथ तेरी अवलंबा,
कृपा करऊ जय जय जगदंबा।
मधूकैटभ जो अति बलवाना,
बाहु युध्द विष्णु से ठाना।
समर हजार पाँच में घोरा,
फिर भी मुख उनसे नहि मोरा।
मातु ते मृत्यु भई खल केरी,
पुरवहु माता मनोरथ मेरी।
चंड मुंड जो थे विख्याता,
क्षण महुँ संहारेउ तेहि माता।
रक्त बीज से समरथ पापी,
सुर मुनि हृदय धरा सब काँपी।
काटेउ सिर जिम कदली खंभा,
बार-बार बिन ऊँ जगदंबा।
जग प्रसिध्द जो शुम्भ निशुम्भा,
क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा।
भरत मातु बुध्दि फेरेउ जाई,
रामचन्द्र बनवास कराई।
एही विधि रावण वध तू कीन्हा,
सुर नर मुनि सब को सुख दीन्हा।
को समरथ तव यश गुन गाना,
निगम अनादि अनंत बखाना।
विष्णु रुद्र अज सकही न मारि,
जिनकी हो तुम रक्षाकारी।
रक्त दन्तिका और शताक्षी,
नाम अपार है दानव भक्षी।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा,
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा।
दुर्ग आदि हरीन तू माता,
कृपा करहु जब-जब सुखदाता।
नृप कोपित को मारन चाहै,
कानन में घेरे मृग नाहै।
सागर मध्य पोत के भंजे,
अति तूफान नहिं कोऊ संगे।
बहुत प्रेत बाधा या दुःख में,
हो दरिद्र अथवा संकट में।
नाम जपे मंगल सब होई,
संशय इसमें करई न कोई।
पुत्रहीन जो आतुर भाई,
सबै छाँड़ि पूजें एही माई।
करै पाठ नित यह चालीसा,
होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा।
धूपादिक नवैद्य चढ़ावै,
संकट रहित अवश्य हो जावै।
भक्तिमातु की करै हमेशा,
निकट न आवै ताहि कलेशा।
बंदी पाठ करें सतबारा,
बंदी पाश दूर हो सारा।
रामसागर बाँधि हेतु भवानी,
कीजै कृपादास निज जानी।
II दोहा II
मातु सूर्य कान्ति तब अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप।
बल बुध्दि विद्या देहु मोही, सुनहु सरस्वती मातु।
रामसागर अधम को आश्रय तु ही ददातु।।
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